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इस राजनीती की शतरंज में
मोहरे पल-पल बदलते हैं।
हरी-भूरी गिरगिट की भांति
नेता सब रंग बदलते हैं।।
आज जो विपक्ष में बैठा
हर पल शोर मचाता है।
हरे-हरे नोटों को देख
अलग ही राग सुनाता है।।
सत्ता का मोह है कुछ ऐसा
दायें को बाएं से मिलाता है।
काले-भूरे गिद्ध की भांति
बिचला भी चक्कर लगाता है।।
विचारधारा तो है लुप्त विचार
राजनीती अलग इक खेल है।
काले धन्दों, सफ़ेदपोश गुंडों का
हो चुका इसमें समावेश है।।
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Pete Oxford / naturepl.com